मनुष्य द्वारा पैदा की गई आपदाएं
ग्लोबल वार्मिंग
आज के सभी वैज्ञानिक मानते हैं कि वायुमंडल गरमा रहा है, और इसके लिए काफी हद तक इंसान ही जिम्मेदार है. ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को जानना आसान है,कि इससे किस तरह समुद्र गरम होंगे, ध्रुवों और ग्लेशियर की बर्फ पिघलेगी और समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटीय शहर डूब जायेंगे, मौसम का मिजाज बदलने से भयंकर तूफान आएंगे, बाढ़ आएंगी,और सूखा पड़ेगा.वायुमंडल की यह गर्माहट अनेक तरीकों से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालेगी, सीधे तौर पर वायुमंडल तप्त हवाएं पैदा करेगा और रातें भी गर्म हवाओं से मुक्त नहीं होंगी. सन 2020 तक गर्म हवाओं से होने वाली मौतें दुगनी हो जाएंगे. जलवायु में आई परिवर्तन में फसलों की कई बीमारियां जन्म लेंगे,जो महामारीयों को जन्म देंगी.
वर्तमान में वायुमंडलीय गैस पर्याप्त मात्रा में ऊष्मा को रोककर पृथ्वी पर जलवायु के लिए जरूरी अनुकूल स्थितियां बनाए रखती है, लेकिन तापमान में सिर्फ 1 डिग्री की बढ़ोतरी से ही जलवायु प्रणाली पर उल्टा असर पड़ेगा.
पृथ्वी के गर्म होने पर एक बड़ी चिंता मच्छरों द्वारा फैलाए जाने वाली बीमारियां जैसे- मलेरिया, डेंगू, पीला बुखार आदि को लेकर है. गर्म वातावरण इन परजीवीयो के लिए अनुकूल होता है.जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित इंटर्न वर्ण मेंटल पैनल ने हिसाब लगाया कि ग्रीन हाउस गैसों के वायुमंडलीय सांद्रण को बढ़ने से रोकने के लिए वर्तमान में वायुमंडल में उत्सर्जित की जा रही गैसों में 60 से 70% की कमी लानी होगी.
पारिस्थितिकीय पतन-
हाथी या बाघ की हत्या अथवा बरसाती जंगलों में लगी आग के चित्र लोगों का ध्यान जल्दी आकर्षित करते हैं. लेकिन जो बड़ी और गंभीर समस्या है, वह बहुत कम नजर आती है. संपूर्ण जैव विविधता का नुकसान अरबों वर्षों के विकास क्रम ने हमारी दुनिया में ऐसा संसार रचा है, जहां हर जीव का कल्याण अन्य अनगिनत जीवो से किसी न किसी रूप से जुड़ा हुआ है .उदाहरण के लिए कुछ समय पूर्व लेक सुपीरियर स्थित आयजल रॉयल नेशनल पार्क मैं किए गए एक अध्ययन मैं पाया गया की बर्फीली सर्दियां किस तरह भेड़ियों के बड़े समूहों में हिरणों का शिकार करने के लिए प्रेरित करती हैं. हिरणों की जनसंख्या में आई गिरावट गुल मेहंदी और देवदार के वृक्षों को उगने में मदद करती है. यह वृक्ष वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड खींचते हैं, जो बदले में जलवायु को प्रभावित करते हैं, यानी एक पूरा चक्र है जो आपस में जोड़ा है. बढ़ती जनसंख्या के दबाव के चलते हम कृषि और मकानों के लिए जंगलों का सफाया कर रहे हैं, और वहां कुछ किस्म की फसलें तथा नए पशुओं को ला रहे हैं. खेती के साथ-साथ नए-नए रसायन पर्यावरण में पहुंचा रहे हैं. इन मानवीय गतिविधियों से हर साल 30000 प्रजातियां गायब हो रही हैं. इससे स्पष्ट है कि हम पृथ्वी के इतिहास में सबसे बड़ी extinction से गुजर रहे हैं. इससे विश्व परिस्थितियों का नाजुक संतुलन डगमगा रहा है, परागण करने वाले कीट विलुप्त हो रहे हैं, इससे फसलों का व्यापक नुकसान तो होगा ही, नए प्रकार की बीमारियां भी सामने आएंगी.
बायोटेक के झंझट-
एक तरफ हम प्राकृतिक प्रजातियों का सफाया कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ आनुवंशिक अभियांत्रिकी जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए नए भी तैयार कर रहे हैं. जेनेटिक रूप से तैयार खाद्यान्न पौष्टिक और स्वादिष्ट हो सकता है, इसी तरह से तैयार रोगाणु माइक्रोब्स हमारी स्वास्थ्य समस्याओं को हल कर सकते हैं. और जीन थेरेपी हमारे डीएनए में मौजूद मूल खराबी को जड़ से मिटाने का सुनहरा सपना साकार कर सकती है. लेकिन इसके कुछ काले पक्ष भी हैं. यद्यपि अभी ऐसे प्रमाण नहीं है कि जेनेटिक तौर पर रूपांतरित भोजन असुरक्षित है, लेकिन इस बात की आशंका जरूर है कि रूपांतरित वनस्पतियों के जीन रिस् कर अन्य प्रजातियों मैं प्रकट हो सकते हैं.साथ ही इस तरह की फसल कीटनाशक प्रतिरोधक को पनपा सकती है. यह भी संभव है कि परिवर्तन किए गए रोगाणुओं को नियंत्रित करना ही मुश्किल हो जाए. इनमें सबसे बड़ा खतरा जैव तकनीक के दुरुपयोग का है. कोई आतंकवादी संगठन या दुष्ट देश आसानी से यह सब कर एक बहुत बड़ी तबाही मचा सकता है.
पर्यावरणीय जहर-
औद्योगिक चिमनियों से निकले भारी धातु के धुए ने पृथ्वी के चारों ओर एक घेरा बना लिया है. यहां तक कि अंटार्कटिका का आदिकालीन हिम सागर भी इससे अछूता नहीं है.
कृषि में कीटनाशकों का प्रयोग नदी झीलो और समुद्रों में धड़ल्ले से जहर घोल रहा है. तमाम तरह का यह औद्योगिक प्रदूषण हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावित कर हमारे शरीर को धीरे धीरे अनेक बीमारियों का घर बना रहा है. इस संसार के प्रदूषित पर्यावरण से ना सिर्फ आदमी बल्कि तमाम जीव जंतु प्रभावित हो रहे हैं.
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