दैनिक क्रियाओं को कैसे बदलें ? और आत्महत्या करने से कैसे बचें?

           


जब से यह करोना कोविड-19 वायरस आया है, तब से बहुत ज्यादा देखने को मिला है, कि लोग बेरोजगार हो गए हैं. लोगों की नौकरी चली गई है, जिसकी वजह से लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है. जिसके चलते बहुत सारे लोग पूरे परिवार सहित आत्महत्या कर रहे हैं.
 ऐसा क्यों हो रहा है? यह क्या है?
 हर परिवार के लिए एक चेतावनी या एक सबक.
 ऐसा शायद खुद की ही गलतियों की वजह से हो रहा है.वह कैसे? आइए जानते हैं, और उसके समाधान के बारे में भी जानते हैं क्योंकि ऐसा किसी के भी साथ  हो सकता है.

हाल ही में एक इंदौर का केस आया है. वहां के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर में अपने पूरे परिवार सहित आत्महत्या कर ली. ऐसा क्यों हुआ? जिस व्यक्ति की डेढ़ लाख महीना सैलरी हो, जिसके दोनों बच्चे D.P.S. जैसेेे अच्छे स्कूल में पढ़ते हो, और नौकरी में भी घर से ही Work from home की सुविधा हो, और इसके साथ साथ शेयर बाजार में भी अच्छा खासा प्रॉफिट हो रहा हो, तो ऐसे व्यक्ति को पूरे परिवार सहित आत्महत्या क्यों करनी पड़ी? 
वह व्यक्ति आत्महत्या क्यों करेगा
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कोरोना की वजह से पिछले महीने नौकरी जाने  के कारण  इस महीने पूरे परिवार ने आत्महत्या कर ली. जबकि मां को भी अच्छी पेंशन मिलती थी. हर तरफ से आर्थिक स्थिति ठीक थी.
बात यह है कि लोग जितना कमाते हैं उसी हिसाब से अपने शौक भी पाल लेते हैं. अभी तो यहां सिर्फ एक केस के बारे में बताया जा रहा है, पूरे विश्व भर में न जाने कितने ऐसे लोग होंगे जिन्होंने आर्थिक स्थिति के चलते आत्महत्या कर ली होगी. 
इस सब में किसकी गलती होगी? 
शायद पूरी तरह से खुद की ही गलती है. 
यह सब कैसे रोका जाए? ऐसा क्या करें जिससे यह सब ना हो.. 

1- सबसे पहले आती है बचत कैसे करें? .. 
आज के समय में इसका कोई भी दूसरा तरीका नहीं है, क्योंकि लोगों की सैलरी 2,50000 हो या 25000 वह लोग बचत के नाम से कुछ भी नहीं कर रहे हैं. अपनी सारी कमाई अपने शौक को पूरा करने में ही खत्म कर देते हैं. अपने भविष्य के लिए कुछ भी नहीं बचाते. घर की सारी चीजें लोन पर ही लाते हैं, और जब नौकरी चली जाती है, तब देखते हैं कि उनके पास लोन चुकाने तक के पैसे नहीं है. डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड सब खाली है, तो ऐसे में लोगों के पास सिर्फ एक ही रास्ता बचता है. आत्महत्या! 

तो ऐसे में किसकी गलती मानेंगे इसमें तो पूरी तरह से गलत आपकी ही है. अगर 2,50000 या 25000 महीने सैलरी में से एक सुनिश्चित रकम बचाई हो, तो शायद किसी को भी आत्महत्या ना करनी पड़े.
                 

इसलिए सबको बचत अवश्य करनी जरूरी है. 
हमारे माता पिता एक छोटी सी सैलरी में भी कितना कुछ कर लेते थे. हमें पढ़ाते भी थे, घर भी चलाते थे, और बचत भी करते थे. उसी बचत से वह लोग प्रॉपर्टी भी बनाते थे. 
जो प्रॉपर्टी वह अपने बच्चों के लिए सहेज कर रखते थे. लेकिन आज प्रॉपर्टी तो दूर ,उनकी सैलरी घर के खर्चों के लिए ही नहीं हो पाती, इसलिए बचत कीजिए और खुश रहिए. 

2- अपने शौक जरूरत के हिसाब से ही करें-
पहले के बुजुर्ग सही कहते थे, कि जितनी लंबी चादर हो उतने ही पैर फैलाओ. कभी-कभी लगता है, कि जो भी पुरानी कहावत है, वह कहीं हद तक सही थी. अगर हम अपनी जरूरतों के हिसाब से ही शौक  करेंगे तो शौक भी पूरा होगा और कुछ बचत भी होगी.
 लेकिन आज के समय में लोग बाहर का खाना खाना ज्यादा पसंद करते हैं, बजाय घर के. अच्छे महंगे कपड़े पहनते हैं, बड़े बड़े मॉल में खरीदारी करते हैं, अगर यही सब नहीं करेंगे और थोड़ा हाथ को समेट कर चलेंगे तो शायद उनकी life style में कोई परिवर्तन नहीं आएगा. बाहर खाना खाने की जगह घर पर ही पौष्टिक खाना खाएंगे तो थोड़ी बचत भी होगी और खुद भी स्वस्थ रहेंगे. बड़े बड़े मॉल से कपड़े खरीदने की बजाय किसी छोटी दुकान से कपड़े लेंगे तो वहां भी बहुत अच्छे कपड़े मिलेंगे, वह भी कम दाम में. अगर ऐसा करते हैं तब भी किसी को कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा. फर्क पड़ेगा तो सिर्फ आप की बचत पर आपकी बचत ज्यादा होगी.

3- अपने परिवार को महत्व दें-
हमारे माता पिता हमसे  हमेशा प्यार करते हैं, वह पैसों से नहीं प्यार करते. अगर आप अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में अपने माता-पिता को बताओगे तो हो सकता है कि आपकी कुछ आर्थिक मदद हो जाए, और आर्थिक ना सही तो मानसिक मदद से ज्यादा दुनिया की कोई मदद नहीं होती. लेकिन आपके दिमाग में आता है कि मैं अब बड़ा हो गया हूं, अपने माता पिता को अपनी आर्थिक तंगी के बारे में कैसे बताऊं, तो आप हमेशा याद रखें कि आप चाहे कितने भी बड़े हो जाएं, अपने माता-पिता के लिए आप हमेशा बच्चे ही रहोगे, उनको यह सब बताने में कैसी शर्म,कैसा संकोच. इसलिए अपने ईगो को छोड़कर अपनी बात उनके सामने रखिए, अपना ईगो बाहर वालों के लिए रहने दे.           

4- आत्मविश्वास और हिम्मत रखें-
पूरी दुनिया में किसी की भी सैलरी एक जैसी नहीं है, किसी की सैलरी कम है, तो किसी की ज्यादा. आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखाना जिसकी सैलरी ₹20000 प्रति महीना हो, सोचिए वह अपना घर कैसे चलाता होगा इतने कम पैसे से, फिर भी  वह खुश रहता है. क्योंकि उसके खर्चे उसकी सैलरी के हिसाब से हैं, उसके मन में कभी भी यह विचार  नहीं आता कि उसकी सैलरी  कम है तो उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए, लेकिन नहीं वह खुश है उसके दिमाग में यह बात कभी भी नहीं आएगी, क्योंकि वह उतनी ही सैलरी में से कुछ बचाता भी है ,यह बात उन लोगों के दिमाग में आती है जिनकी सैलरी बहुत ज्यादा होती है, वह लोग अपनी ज्यादा सैलरी के चलते अपने शौक भी बड़े कर लेते हैं, उन्हें यह भी नहीं पता चलता कि उनकी 1 महीने की सैलरी कब खत्म हो गई. यह सब क्या है सिर्फ और सिर्फ खुद की गलती.
पैसा कमाना कोई बुरी बात नहीं है, कमाइए. लेकिन खर्च हिसाब से कीजिए, और इस जीवन को मत मिटाए, जिंदगी बहुत अनमोल होती है उसे जीना सीखिए. 
 खुद पर भरोसा रखें , अपना आत्मविश्वास कम ना होने दें , सब ठीक हो जाएगा .

5- परेशानियों से भागना नहीं है उनका सामना करें-
हम सब भगवान की देन है, भगवान सबको सुख भी देता है और दुख भी. यह जीवन का चक्र है. इसलिए कभी भी मुश्किलें आने पर उन से भागना नहीं चाहिए, उनका सामना करना चाहिए, नौकरी के चले जाने पर या आर्थिक स्थिति खराब होने पर आत्महत्या कर लेने का कोई समाधान नहीं है, बल्कि उस परिस्थिति में डटकर खड़े रहना वह मानवता है.
 अगर आपकी नौकरी चली गई है, और आपके बच्चे अच्छे बड़े प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं तो उन्हें सरकारी स्कूल में पढ़ाने में कोई शर्म नहीं है, तो क्या हुआ कि सरकारी स्कूल में कम सुविधाएं हैं, लेकिन वहां की पढ़ाई तो अच्छी है. हमारे देश में ना जाने कितने लोग सरकारी स्कूल से पढ़कर I.P.S या P.C.S  जैसी बड़ी-बड़ी पोस्ट पर हैं. स्कूल ज्ञान से जाना जाता है, ज्यादा फीस से नहीं.
ऐसा  बच्चों पर ही नहीं आप पर भी लागू होता है, अगर आपकी सैलरी पहले 100000 थी, और नौकरी जाने के बाद अगर आपको 75000 सैलरी की नौकरी मिल रही है,  उस नौकरी को आप खुशी-खुशी अपनाएं, आप यह मत सोचिए कि यह आपके हिसाब से कम है, अगर आप ऐसा सोचेंगे तो आपके हाथ से यह 75000 भी चले जाएंगे. क्योंकि किसी दूसरे के लिए यह 75000 बहुत अच्छी रकम है. 
हमारे भारत में एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है - कुछ ना होने से कुछ होना अच्छा है.

6- अपनी हार को स्वीकार करना सबको आना चाहिए-
यह एक बहुत बड़ी बात है जो सबको अपने जीवन में अपनानी होगी. वह यह कि अपनी हार को स्वीकार करना. जी हां! अगर आपने अपनी हार स्वीकार कर ली तो समझिए आपने खुद पर विजय हासिल कर ली, और यही बात आप अपने बच्चों को भी सिखाएं ,क्योंकि अक्सर कर देखा गया है कि जब भी बच्चे किसी भी गेम में हार जाते हैं तो बहुत आक्रोश हो जाते हैं,इसलिए आप अपने बच्चों को हमेशा गेम में जिताए नहीं, उन्हें हार के बारे में भी अवगत कराएं.. उन्हें तैयार करें कि अगर आप जीतते हैं तो हारते भी है. उन्हें अपनी हार को स्वीकार करने के बारे में बताएं. यह उनके लिए बहुत जरूरी है. यह आपकी जिम्मेदारी है ,नहीं तो यह भी बड़े होकर अगर किसी भी चीज से हारते हैं, तो उनके पास भी आत्महत्या के अलावा दूसरा उपाय नहीं होगा.
खुद भी और अपने बच्चों को भी जिंदगी के दोनों पहलुओं को दिखाएं,उन्हें बताएं कि जैसे- दिन है तो रात है, काला है तो सफेद है, अच्छा है तो बुरा है, हार है तो जीत है.  खुशी है तो गम भी है. इन सब  नैतिक नियमों के बारे में खुद भी जाने और अपने बच्चों को भी बताएं, तभी यह जीवन आप अच्छे से जी पाएंगे और खुश रह पाएंगे. नहीं तो पता नहीं यह जीवन आत्महत्या करके ही खत्म ना हो जाए.

मेरे द्वारा लिखी हुई यह बातें आम जिंदगी की है. मेरा उद्देश्य किसी को सही या किसी को गलत बताना नहीं है. इसे अपने विचारों में एक अच्छी सोच के साथ शामिल करें और कठिन परिस्थितियों में भी मुस्कुराए.
 वैसे भी कोरोना वायरस की वजह से लोग विकट परिस्थितियों में भी मुस्कुरा कर आगे बढ़ रहे हैं.
 हमेशा याद रखिए-
कभी खुशी कभी गम, कभी ज्यादा कभी कम


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