#ओ स्त्री.... तू बस चुप रहे

             

          ओ! स्त्री...


नहीं है कोई इज्जत, ना है कोई ठिकाना! ओ स्त्री....
तू बस चुप रहे, तेरी जिंदगी का बस यही है फसाना...
मां बाप ने जन्मा, मां बाप ने पाला
दूसरे घर दे दिया तुझे, अपनों ने ही पराया कर डाला!
अपना तेरा तेरा अपना करते करते!
यह कैसा तूने सपना देख डाला.
 ओ स्त्री.. तू बस चुप रहे, तेरी  जिंदगी का यही है फसाना...

                     

पढ़ लिख कर बड़ी हुई, जिंदगी में कुछ कर दिखाने को!
हाथ में पकड़ा दी कर्छी और बेलन, तेरे पास है कुछ पकाने को!
रिश्ते बनाए, घर बनाया, परिवार बनाया,तोड़कर अपने सपने को!
ससुराल में दे डाला ताना, लेकर सिर्फ खाने को...
नहीं है कोई इज्जत, ना है कोई ठिकाना! ओ स्त्री...
तू बस चुप रह, तेरी जिंदगी का बस यही है फसाना....

               

मेरे तेरे घर से होती है, इस भेदभाव की शुरुआत है!
अब मैं भी आवाज उठाऊंगी, अगर उठता उसका हाथ है!!
सर उठा, आवाज उठी मेरी, खिलाफ अत्याचार के!
केरोसिन डाल जला डाला मुझे, झूठे रिश्ते प्यार के.
नहीं है कोई इज्जत, ना है कोई ठिकाना! ओ स्त्री...
तू बस चुप रह, तेरी जिंदगी का बस यही है फसाना..


   

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