# दुनिया को इन दुश्मनों से कैसे बचाएं?

Save our Planet-Earth

                   
                                         
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यदि हम अपने अस्तित्व के 500,000 बरसो पर नजर डालें तो अब तक का यह सफर ठीक-ठाक लगता है. होमोसेपियन (मानव) ने जिस भूमि पर भ्रमण किया, वहां हमने शहर बनाया, जटिल भाषाओं की रचना की और दूसरे ग्रहों तक रोबोट भी भेजें. यह सिलसिला क्या कभी खत्म होगा? इस तरह की कल्पना करना मुश्किल है. लेकिन सच यह भी है, इस धरती पर अब तक रहने वाली समस्त प्रजातियों का 99% जातियां विलुप्त हो चुकी हैं.
इसमें हमारे प्रत्येक होमिनिड पूर्वज भी शामिल है. 1983 में ब्रिटिश ज्योतिर्विज्ञान ब्रेंडन कार्टर ने डूम्सडे आर्ग्यूमेंट (कयामत का तर्क) मैं लिखा था, इसमें उन्होंने सांख्यिकीय तरीके से अनुमान लगाने का प्रयास किया, कि विलुप्त हो चुकी प्रजातियों में हम कब शामिल होंगे! मानवीय गतिविधियां इस पृथ्वी पर शेष सभी जीवक रूपों को अस्त व्यस्त कर रही है, और अनुमान है कि प्रजातियों के विलुप्त होने की वर्तमान दर जीवाश्म में रिकॉर्ड के औसत से 10,000 गुना ज्यादा है.
हमारी पृथ्वी पर प्रजातियों के विलुप्त होने का लंबा सिलसिला रहा है. क्या मानव प्रजाति भी कभी इस दायरे में आ सकती है?
वैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसे कई प्राकृतिक व मानव जनित कारण हैं जो हमारी दुनिया को तबाह कर सकते हैं.
  आज हम किसी दुर्लभ प्राणी के विलुप्त होने पर तो चिंता कर सकते हैं, लेकिन इस सूची में अगला नंबर क्या हमारा नहीं हो सकता?
बहुत पहले प्रकाशित विज्ञान पत्रिका डिस्कवर में एक लेख में ऐसे कई खतरो का जिक्र किया गया था, जो इस धरती पर मानव जाति का सफाया कर सकते हैं. इनमें से कुछ खतरे प्राकृतिक हैं, तो कुछ खतरे मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न है. संक्षिप्त में कुछ खतरे इस तरह है-
1- आसमानी आपदाएं
2- गामा किरणों का विस्फोट
3- महा सौर ज्वालाए
4- ब्लैक होल
5- पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव
6- ज्वालामुखी ज्वार
7- ग्लोबल महामारी


1-आसमानी आपदाएं क्या है?

                 
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हमारी पृथ्वी को सबसे ज्यादा खतरा उन धूमकेतु तथा छुद्र ग्रह जैसे अंतरिक्षय आक्रांता से है, जिन्होंने एक नहीं कई बार पृथ्वी से प्रजातियों का सफाया किया. साढे चार अरब वर्ष के भूगर्भीय इतिहास में पृथ्वी के दामन पर अंकित लगभग 200 दाग इस बात के गवाह हैं.
मंगल और बृहस्पति के बीच हजारों की संख्या में छोटे-छोटे छुद्र ग्रह या चट्टाने तैर रही हैं. साढे छह करोड़ वर्ष पहले किसी छुद्र ग्रह से टकराने के बाद पैदा हुई विषम जलवायु के चलते ही डायनासोर का धरती से नामो निशान मिट गया था. इससे भी बड़ी टक्कर 25 करोड़ वर्ष पहले हुई थी. जिसके बाद समुद्र की 90% और जमीन पर कोशिकीय जीवो की 70% प्रजातियां हमेशा हमेशा के लिए विलुप्त हो गई थी. यह तो बहुत पुरानी बातें हैं, लेकिन 1908 में 200 फुट लंबा चौड़ा एक धूमकेतु साइबेरिया स्थित तुगस्का के वायुमंडल में विस्फोट हुआ था. इसकी ऊर्जा हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम से 100 गुना ज्यादा थी. इससे इस निर्जन क्षेत्र में 100 वर्ग मील में फैले वृक्ष धराशाई हो गए थे.
  इससे पहले 1490 में चीनी शहर चिंग मॉग मैं एक छोटे से अंतरिक्ष पिंड के गिरने से 10000 लोग मारे गए थे. हालांकि छोटे आकार के अंतरिक्ष पिंड बिना कोई नुकसान किए वायुमंडल में टकरा कर चले जाते हैं, लेकिन कोई भी बड़ा पिंड मानव जाति के लिए घातक हो सकता है.
पृथ्वी से हुई ऐसी किसी टक्कर के बाद उठी धूल सूर्य प्रकाश को वर्षों तक सतह पर नहीं आने देती. इससे जलवायु के साथ-साथ पूरा भोजन चक्र अस्त-व्यस्त हो जाता है. और सौरमंडल में नेपच्यून के पार को पियर पट्टी वाले क्षेत्र में करीब 100 हजार हिम पिंड धूमकेतू हैं. जिनमें से कई 50 मील लंबे चौड़े हैं. यह कूरियर पट्टी पृथ्वी की तरह छोटे धूमकेतु की वर्षा करती रहती है. अगर इनमें से कोई बड़ा पिंड पृथ्वी से टकराया, तो बड़े जीवन रूपों को छोड़िए कॉकरोच तक जिंदा नहीं बचेंगे.
ऐसे खतरों से बचने के लिए वैज्ञानिक कई योजनाओं पर काम भी कर रहे हैं, और वह योजनाएं काफी हद तक सफल भी हुई है.

2- गामा किरणों का विस्फोट क्या है?

                     
Gaama rays
Gaama rays

यदि हमारी नजरें गामा किरणों को देख पाने की क्षमता रखती तो हम देखते कि किस तरह से यह ब्रह्मांड की किरणें हमारा पीछा करती हैं. दिन में एक या दो बार हमें क्षण भर के लिए ऐसी चमक दिखाई देती, जिसके सामने सब कुछ फीका होता. भौतिक ज्ञाताओं के अनुसार गामा किरणों के यह विस्फोट अत्यंत दूर मंदाकिनीय (गैलेक्सी) में पैदा होते हैं. जो सूर्य से खरबो गुना ज्यादा ऊर्जावान होते हैं. इस तरह की प्रलय कारी टक्कर का पहले से पता लगाना संभव नहीं होता.
ऐसी कोई टक्कर यदि हमारी आकाशगंगा में हमारे नजदीक हुई तो इसका पता लगाना संभव नहीं होगा, और विस्फोट होने शुरू हुए तो इसके से बचना कोप से बचना मुश्किल होगा. 100 वर्ष की दूरी (साफ रात को आकाश में दिखाई देने वाले सभी तारों से भी दूर) पर भी यह विस्फोट सूर्य जैसी चमक वाला होगा.
हमारा वायुमंडल इस विस्फोट से उत्सर्जित भयानक एक्स तथा गामा किरणों से हमें बचाएगा, लेकिन कीमत चुका कर. शक्तिशाली विकिरण पूरे वायुमंडल को जलाकर ध्वस्त कर देगा, बिना ओजोन परत के सूर्य की पराबैंगनी किरणें पूरी ताकत से पृथ्वी पर पहुंचेंगे, और त्वचा कैंसर का कारण बनेगी. इसके साथ ही यह किरणें सागरों में फोटो सिंथेटिक पेक्टन को खत्म कर देगी, जोकि वायुमंडल को ऑक्सीजन मुहैया कराती है. इससे सारी भोजन श्रंखला चरमरा जाएगी.
वैसे अब तक ऐसी जितनी भी गामा किरणों के विस्फोटों का पता चला है, वह हमारी आकाशगंगा से अत्यंत दूर गहन ब्रह्मांड में घटित हुई हैं. जिससे पता चलता है कि यह दुर्लभ घटनाएं हैं.
वैज्ञानिक भी इन विस्फोटों के बारे में बहुत कम जानते हैं, और यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि क्या हमारी आकाशगंगा के नजदीक ऐसा विस्फोट हो सकता है.

3- महा सौर ज्वालाए क्या है?

                     
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सौर ज्वाला जिन्हें कोरोनल मास इंजेक्शन भी कहा जाता है. दरअसल सूर्य पर होने वाले चुंबकीय विस्फोट हैं. जो पृथ्वी पर तेज गति से आणविक कड़ों की मूसलाधार वर्षा करते हैं. पृथ्वी का वायुमंडल और चुंबकीय क्षेत्र साधारण सौर ज्वाला के घातक प्रभाव को तो व्यर्थ कर देता है, लेकिन पुरानी खगोलीय रिकॉर्ड को देखने पर अमेरिका स्थित थेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ब्रांडलेसैफर ने इस तरह के प्रमाण पाए, की पूरी तरह से सामान्य दिखने वाले सूर्य, समान तारों की चमक कुछ क्षणों के लिए 20 गुना ज्यादा बढ़ जाती है. शेफर का मानना है की इन तारों में दिखने वाली है अतिरिक्त चमक महा ज्वाला है. जो कि सामान्य सौर जवालाओ से लाखों गुना शक्तिशाली होती है. सूर्य में उठी ऐसी कोई महान और ज्वाला कुछ घंटों में पृथ्वी को भून सकती है. हालांकि इस बात के प्रमाण है कि हमारा सूर्य इस तरह की गतिविधियों से संलग्न नहीं है.
फिर भी वैज्ञानिक अभी यह नहीं जानते कि दूसरे तारों में इस तरह की महा सौर  ज्वालाए क्यों पैदा होती हैं? और क्या हमारा सूर्य भी कभी इस तरह का व्यवहार करेगा?
                 

एक तरफ जहां सौर गतिविधियां घातक सिद्ध हो सकती हैं, वहीं बहुत कम सौर सक्रियता समस्या भी पैदा कर सकती है, हार्वर्ड स्मिथ सोनियान के भौतिक विज्ञान शैली वैल्यूनस का कहना है कि सूर्य जैसे अनेक तारे लंबी निष्क्रियता के दौरे से गुजरते हैं. इस दौरान वे 1% तक धुंधली हो जाते हैं. यह 1% भले ही बहुत कम प्रतीत हो, लेकिन यदि सूर्य की चमक में गिरावट आई, तो यह हमें एक और हिम युग मैं धकेल सकता है. ऐसे प्रमाण मौजूद हैं की  घटी हुई सौर गतिविधि के चलते पिछले 10000 वर्षों में 17 से 19 बार पृथ्वी पर शरद सौर आए हैं.

4- बदमाश ब्लैक होल क्या है?

             
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ब्लैक होल ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली और रहस्यमई पिंड है. इसका गुरुत्वाकर्षण इतना सशक्त होता है, की सबसे तेज गति से चलने वाला प्रकाश भी इससे बाहर नहीं निकल सकता, एक ब्लैक होल इतना संघनित होता है कि 10 करोड़ किलोमीटर ब्यास का सूर्य, मात्र 700000 किलोमीटर व्यास के ग्लोब में सिमट जाएगा.
हमारे सूर्य का व्यास 1,390000 किलोमीटर है, हर मंदाकिनी के केंद्र में एक भीमकाय ब्लैक होल होता है, नॉट्रेडेम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डेविड वार्नर ने हाल ही में दूरस्थ तारों के प्रकाश के तोड़ने मुड़ने और बढ़ने के आधार पर दो ब्लैक होल का पता लगाया है. इस तरह के निरीक्षण और सैद्धांतिक आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि सिर्फ हमारी आकाशगंगा मैं करीब एक करोड़ ब्लैक होल होंगे. ब्लैक होल अन्य तारों की तरह परिक्रमा करते हैं, यानी इनके हमारे रास्ते में आने की कोई खतरे नहीं है, फिर भी कोई सामान्य तारा हमारी तरफ आ रहा हो तो हम उसका पता लगा सकते हैं. लेकिन ब्लैक होल के मामले में हमें बहुत कम चेतावनी ही मिल पाएगी, ऐसे किसी ब्लैक होल के नजदीक आने पर कुछ दशक पूर्व ही खगोल वेदो को सौरमंडल के बाहरी ग्रहों की कक्षाओं में आई विचित्र व्यस्तता का पता चल पाएगा, जैसे ही इसका प्रभाव बढ़ेगा वैसे ही ब्लैक होल की स्थिति और द्रव्यमान का पता लगाना संभव होगा.
वैसे विनाश लाने के लिए ब्लैक होल को पृथ्वी के निकट आने की भी जरूरत नहीं होगी. इसके सौरमंडल से काफी दूरी पर गुजरने से ही सारे ग्रहों की कक्षाएं अस्त व्यस्त हो जाएंगे. संभव है पृथ्वी दीर्घ वृत्ताकार कक्षाओं में चली जाए, इस कारण पृथ्वी की जलवायु में भारी परिवर्तन होगा, यह भी संभव है कि पृथ्वी सौरमंडल से निकलकर गहन अंतरिक्ष में चली जाए, सौभाग्य से हम अपनी आकाशगंगा के अपेक्षाकृत उस शांत छोर पर हैं, जो फिलहाल ब्रह्मांड की उग्र गतिविधियों से मुक्त है, और जहां अभी तक ब्लैक होल होने के संकेत नहीं मिले हैं.

5- पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव क्या है?

                     
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वैज्ञानिकों के अनुसार हर 100,000 सालों के बाद पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र 100 सालों के लिए लगभग क्षीण हो जाता है. और फिर उस अंतराल के बाद उत्तर तथा दक्षिण ध्रुव पर धीरे-धीरे प्रकट होता है.
ऐसा ही एक उल्टाव 780000 साल पहले हुआ था. संभव हो वैसा ही समय अब नजदीक हो. उससे भी बुरा पिछली शताब्दी में हमारे चुंबकीय क्षेत्रों का बल प्रतिशत घटा है, सूर्य और गहन ब्रह्मांड से उत्सर्जित होने वाले कणों के तूफान और ब्रह्मांड या किरणों को पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र विक्षेपित कर देता है. बिना चुंबकीय सुरक्षा के यह कण हमारे वायुमंडल पर प्रहार कर पहले से ही क्षीण हो चुकी ओजोन परत को घातक रूप से हानि पहुंचा सकते हैं. इस तरह का चुंबकीय उल्टाव पृथ्वी पर गंभीर परिस्थितिकी गड़बड़ियां पैदा कर सकता है.

6- ज्वालामुखी ज्वार क्या है?

                   
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भूकंप में मृत्यु के लिए जिम्मेदार भूकंप नहीं इमारतें होती हैं. जिन्हें आदमी ने बनाया है. लेकिन ज्वालामुखी के साथ ऐसा नहीं है, 1783 में आइसलैंड में जो ज्वालामुखी फूटा था, उसमें तीन घन मील में लावा निकला था. लावा की बाढ़ और राख ने वहां 9000 लोगों और 80% मवेशियों का सफाया कर दिया था. इस परिस्थिति के फल स्वरुप पैदा हुई विषम जलवायु में भुखमरी से वहां एक चौथाई जनसंख्या खत्म हो गई थी. वायुमंडलीय धूल ने तब नई-नई स्वतंत्र हुए अमेरिका में सर्दियों का मौसम पैदा कर तापमान 9 डिग्री सेल्सियस तक गिरा दिया था, लेकिन वही ज्वालामुखी, घटनाओं की तुलना में यह कुछ भी नहीं है. कहा जाता है कि 6.5 करोड़ साल पहले सतह को चीरती हुई पृथ्वी के मेंटल से शुरू से गरम चट्टानों का प्रवाह जहां फूटा था, वही आज भारत है.
यह प्रस्फुटन सदी दर सदी चलता रहा और इससे ढाई लाख घन मील लावा निकला.
कई वैज्ञानिक डायनासोर की विलुप्त के लिए इसी ज्वालामुखी को उत्तरदाई मानते हैं. इससे भी बड़ी एक घटना साइबेरिया में पेरेन्नियल ट्राइसेप विलुप्त के दौरान हुई थी. उस समय 90% प्रजातियां खत्म हो गई थी. ज्वालामुखी की सल्फ्यूरिक गैस अम्ल वर्षा पैदा करती है, क्लोरीन वाले योगिक ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाते हैं, ज्वालामुखी कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त करती है जो लंबे समय तक ग्रीन हाउस प्रभाव को गर्म रखता है. एक करोड़ सात लाख वर्ष पहले आखरी ज्वालामुखी गतिविधि के चलते ही कोलंबिया नदी पठार की रचना हुई थी. दूसरे का समय शायद बहुत दूर ना हो.

7- ग्लोबल महामारीयां क्या है?

जीवाणु और आदमी का साथ हमेशा से रहा है, लेकिन कभी-कभी इनका संतुलन डगमगा जाता है. चौदहवीं शताब्दी में ब्लैक प्लेग ने हर 4 आदमियों में से एक की जान ले ली थी. फिर एड्स का प्रकोप बड़ा. 1918 और 1919 के बीच करीब 20 करोड लोग इनफ्लुएंजा से मारे गए. एड्स भी इसी तरह का कहर ढा रहा था. हैजा और चेचक जैसी पुरानी बीमारियां भी नई प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रही थी. तीव्र कृषि और भूमि विकास मनुष्यों को जंतुओं के और नजदीक ला रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय आवागमन के बढ़ने से बीमारियों का तेजी से फैलने का खतरा भी पहले से ज्यादा बढ़ा है. इस समय इसी तरह का एक वायरस पूरे विश्व भर में न जाने कितने लोगों की जान ले चुका है. इस वायरस को कोरोनावायरस का नाम दिया हुआ है. 12000 साल पहले अमेरिका में स्तन पानियों के विलुप्त होने की लहर आई थी. जिसकी वजह एक बीमारी थी. इसके विषाणु अमेरिका में बसने के दौरान आदमी के साथ वहां पहुंच गए थे.

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