सकारात्मक सोच.
यह सब बातें हमारे मस्तिष्क से जुड़ी होती है, सब हमारी सोच पर निर्भर करती है कि हम कैसा सोचते हैं, सकारात्मक या नकारात्मक. इसी सोच पर आइए एक कहानी को पड़ते हैं...
एक गांव में एक व्यक्ति अपनी छत पर घास का छप्पर बना रहा था. तभी उसकी हाथ की एक उंगली में कुछ चुभ गया और उसमें से खून निकलने लगा. उस व्यक्ति ने उंगली को दबाया और कुछ खून को निकाल दिया फिर उसने अपनी उंगली में हल्दी लगाकर पट्टी बांध ली, और दोबारा से छप्पर बनाने लगा.
कुछ दिनों बाद उसकी उंगली ठीक हो गई. कई साल निकल गए, लगभग 5 या 6 साल बाद जब छप्पर टूटने लगा तब उसने फिर से छप्पर बनाने का सोचा.
जब उसने पहले वाले छप्पर को हटाया तब उस छप्पर में सूखे हुए सांप के अवशेष मिले. तब उस मजदूर ने जाना उस दिन जब वह छप्पर बना रहा था तब जो चीज उसकी उंगली में चुभी थी, वह किसी चीज की चुभन नहीं थी, बल्कि उसको सांप ने काटा था. वह व्यक्ति एकदम से हैरान हो गया, और 1 घंटे के अंदर ही अंदर उसकी मृत्यु हो गई.
इस व्यक्ति की मृत्यु का जिम्मेदार कौन था. सांप का जहर? या उस व्यक्ति के मन कहां जहर?
जी हां व्यक्ति को सांप के जहर ने नहीं मारा बल्कि उसके मन में छिपे हुए डर रूपी जहर ने उसको मारा.
अगर वह सांप के जहर से मरता तो उसी दिन मर जाता जिस दिन उसको सांप ने काटा था.
हमारा डर ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन होता है, इसलिए हमें निडरता से काम लेना चाहिए, ना कि डर को अपने ऊपर हावी हो होने देना चाहिए,
हमें इस कोरोनावायरस के डर को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने देना है, बस हमें चाहिए थोड़ी सतर्कता, थोड़ी सावधानी, और थोड़ी साफ सफाई.
बाकी का काम तो हमारी सकारात्मक सोच ही कर देगी.
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